एक समाचार आप पढ़ते है "ब्रम्ह में लीन हुए अन्नदाता महारजा " मन अशांत हो उठा...
गावं से कुछ दूर बाहर निकल कर नदी है बाण गंगा कुछ वर्ष पहले १२ महिनों तक जल गतिमान रहता था
उसके किनारे बनी तपोवन भूमि बंगला धाम , जहा रहकर अन्नदाता जी महाराज ने तपस्या के साथ साथ लोग को अपने दैनिक जीवन उत्पन समस्या का समाधान देते रहे |
धर्म का जो वास्तविक स्वरुप होता है मानव को जीने की दिशा देना अन्नदाता जी इस कार्य को बेखुबी निभाया | प्रकृति प्रेमी इस आत्मा अपने आश्रम में आने वाले इंसान को बेसहारा और भूखा नहीं रहने दिया और इस वजह से वो महात्मा अन्नदाता बन गए....
गौ वंश और यघ प्रेम उनको सदा रहा... गौशाला बनाकर चारे पानी की व्यवस्था रखना उनके लिए प्राथमिकता रही है इसी आत्मा जब मानव शरीर छोडती है तो दिलो में अमर हो जाते है जो खुद के लिए न जी कर मानव को जीना सिखाती है.. बंगला धाम उनके बिना सुना सा रहेगा पर जो जीवन की दिशा निर्देश लोग मन जीवंत रहेगे
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