दोस्तों वापस छुटियों पर आने के बाद आज गठ्वारी के एतिहासिक स्थान गढ़( किला) पर जाने के लिए सुबह तैयार हो गया था | वैसे मन तो गुडगाँव था तभी से था| स्कूली दिनों में लगभग रोज इंटरवल(खेलघंटी)में जाया करते थे|
अब कुछ वैचारिक उदभव हुआ देखने नजरिया...
अब कुछ वैचारिक उदभव हुआ देखने नजरिया...
बदल गया था पर उनों दिनों के यादे साथ थी| यह स्थान एह्तिहसिक होने के साथ -साथ धार्मिक भी है| यहाँ माता का मंदिर जिसे गठ्वाली भवानी के नाम से जाना जाता है
इस गढ़ और आम के बगीचों के कारण हमारे गांव का नाम करण हुआ हैऐसा भूगोलवेत्ताओं का मनाना है|
खैर यादों के झोरोखों के साथ मैं गढ़ प्रवेश किया |
इस गढ़ और आम के बगीचों के कारण हमारे गांव का नाम करण हुआ हैऐसा भूगोलवेत्ताओं का मनाना है|
खैर यादों के झोरोखों के साथ मैं गढ़ प्रवेश किया |
समय के साथ बदलाव के बयार यहाँ पर भी चली| गठ्वारी के
विकास के साथ -साथ किले में पथरीले रास्ते के बजाय सीमेंट रोड बना दी गयी है| रंग -रोगन से चमक वापस लोटा दी गयी हम जब पहले वहाँ पहुच कर आम के बगीचों के हरियाली देखा करते वो थोड़ी सी कम नजर आई
मैं आप दोस्तों से यह कहूँगा की बुजर्ग ने गठ्वारी के लिए जो विरासत हमें दी उसको सहेज रखना हमारा कर्तव्य होना चाहिए |गढ़ और आम के बगीचे गठ्वारी की विरासत है
धन्यवाद
आपका अपना
मुकेश सैनी
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